कई फ्लेवर में साबुन
दूध और जड़ी बूटी से बने साबुन कई फ्लेवर में बनाया जा रहा है। खास बात यह है कि साबुन को बनाने के लिए सुगंधित तेल और फ्लेवर के लिए दार्जिलिंग की चायपत्ती, आम और तरबूज आदि चीजें मिलाई जाती हैं। इसीलिए ये साबुन का दाम बढ़ जाता है। इस साबुन की पैकिंग भी खास है इसे किसी कागज के रैपर में नहीं वल्कि ईको फ्रेंडली साबुन की पैकिंग जूट की थैलियों में की जाती है।
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कीमत भी खास
इस खास साबुन की डिमांड भारत के बाहर से आने लगी है। अमेरिका में भी हो रही है। इस खास साबुन की कीमत भी खास है इसे 250 रुपए से लेकर 350 रुपए में खरीदा जा सकता है। अब इस खास साबुन को देश के बड़े शहरों में भी भेजा जा रहा है। इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। साबुन की बढ़ती मांग के बाद इन महिलाओं का जीवन स्तर भी सुधरने लगा है। हालांकि प्लांट छोटा और संसाधनों की कमी होने से उत्पादन कम ही मात्रा में हो रहा है।
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खंडवा जिले के पंधाना विधानसभा के आदिवासी बाहुल्य उदयपुर गांव की महिलाओं का उत्पाद अंचर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाने लगा है। गांव की महिलाओं का नाम रेखाबाई बराडे, ताराबाई भास्कले और काली बाई कैलाश है। इन महिलाओं ने तीन साल पहले इन महिलाओं ने ये काम शुरू किया था।
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साबुन एक छोटे से प्लांट में बनाए जाते हैं जिसको पुणे के ली नामक एक युवक चलाता है। गांव में सबसे पहले गाय के गोबर से साबुन बनाने की ट्रेनिंग दी गई। लेकिन उसमें सफलता नहीं मिलने के बाद बकरी के दूध और जड़ी-बूटियों से बनाना का प्रयास शुरु हुआ। इन महिलाओं को कई बार असफलता हाथ लगी और आखिकार साबुन बन गया।
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आदिवासी महिलाएं दिन में अपनी खेती बाड़ी संभालती है और रात में जड़ी-बूटियों से साबुन बनाने की ट्रेनिंग लेती हैं। कई बार प्रयास करके असफल होवे के बाद आखिकार इनकी मेहनत रंग लाई और इन महिलाओं ने साबुन बनाने में सफलता पाई है।